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भगवान शिव का अद्भुत मंत्र जिससे बड़े से बड़ा रोग भी दूर होता है,नीलकंठ भगवान की पूजा का महत्व

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भगवान शिव का अद्भुत मंत्र जिससे बड़े से बड़ा रोग भी दूर होता है,नीलकंठ भगवान की पूजा का महत्व

 

भगवान भोलेनाथ के अनेकों रूप हैं और वहीं उनके नीलकंठ स्वरूप की पूजा से आपके जीवन में चल रही कई परेशानियों का अंत होता है।

नीलकंठ स्तोत्र
भगवान शंकर का यह स्तोत्र बेहद दुर्लभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है इसका जाप इसे सिद्ध करने के बाद करना चाहिए। इसे सिद्ध करने के लिए इसका 108 बार अकेले में जाप करना चाहिए। इसके सिद्ध हो जाने के बाद इसका जाप आप कभी भी करें, आपने जो संकल्प लिया है वह पूर्ण होगा

नीलकंठ स्तोत्र के लाभ
नीलकंठ स्तोत्र के कई लाभ हैं लेकिन यह साधक के संकल्प पर काम करता है। यानि आप जिस संकल्प के साथ इसका जाप करेंगे वह पूरा होगा। इसके कुछ मुख्य लाभ इस प्रकार हैं।

1. इसके जाप से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। कैंसर जैसी बड़ी बीमारी भी इससे दूर हो सकती है।
2. यह अकाल मृत्यु को भी टाल सकता है लेकिन इसके लिए साधक की प्रबल शक्ति और ऊर्जा की जरूरत होती है।
3. यह आध्यात्मिक हीलिंग के लिए बेहतरीन मंत्र है। इससे आप किसी दूसरे को भी हील कर सकते हैं

4. यह साधक को आर्थिक लाभ भी देता है।

स्तोत्र पढ़ने की विधि
इसे आप घर में ही पढ़ सकते हैं लेकिन इससे पहले आपको एक शिव मंदिर में जाकर शिव जी को एक लोटा जल अर्पित करना चाहिए, जल चढ़ाते वक्त इस मंत्र को एक बार पढ़ना चाहिए। इसके बाद घर वापस आकर इसका 108 बार जाप करें। जाप के लिए रूद्राक्ष की माला का इस्तेमाल करें और लाल आसन पर बैठें। संभव हो तो दीपक के साथ एक कलश में जल भरकर रखें और पाठ पूरा हो जाने के बाद इस पानी को तुलसी के या किसी अन्य पौधे में डाल दें।

 नीलकंठ स्तोत्र
ॐ नमो नीलकंठाय, श्वेत-शरीराय, सर्पा लंकार भूषिताय, भुजंग परिकराय, नागयज्ञो पवीताय, अनेक मृत्यु विनाशाय नमः। युग युगांत काल प्रलय-प्रचंडाय, प्र ज्वाल-मुखाय नमः। दंष्ट्राकराल घोर रूपाय हूं हूं फट् स्वाहा। ज्वालामुखाय, मंत्र करालाय, प्रचंडार्क सहस्त्रांशु चंडाय नमः। कर्पूर मोद परिमलांगाय नमः

ॐ इंद्र नील महानील वज्र वैलक्ष्य मणि माणिक्य मुकुट भूषणाय हन हन हन दहन दहनाय ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोर घोर तनुरूप चट चट प्रचट प्रचट कह कह वम वम बंध बंध घातय घातय हूं फट् जरा मरण भय हूं हूं फट्‍ स्वाहा। आत्म मंत्र संरक्षणाय नम:।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं स्फुर अघोर रूपाय रथ रथ तंत्र तंत्र चट् चट् कह कह मद मद दहन दाहनाय ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोर घोर तनुरूप चट चट प्रचट प्रचट कह कह वम वम बंध बंध घातय घातय हूं फट् जरा मरण भय हूं हूं फट् स्वाहा

अनंताघोर ज्वर मरण भय क्षय कुष्ठ व्याधि विनाशाय, शाकिनी डाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बंधनाय, अपस्मार भूत बैताल डाकिनी शाकिनी सर्व ग्रह विनाशाय, मंत्र कोटि प्रकटाय पर विद्योच्छेदनाय, हूं हूं फट् स्वाहा। आत्म मंत्र सरंक्षणाय नमः।

ॐ ह्रां ह्रीं हौं नमो भूत डामरी ज्वालवश भूतानां द्वादश भू तानांत्रयो दश षोडश प्रेतानां पंच दश डाकिनी शाकिनीनां हन हन। दहन दारनाथ! एकाहिक द्वयाहिक त्र्याहिक चातुर्थिक पंचाहिक व्याघ्य पादांत वातादि वात सरिक कफ पित्तक काश श्वास श्लेष्मादिकं दह दह छिन्धि छिन्धि श्रीमहादेव निर्मित स्तंभन मोहन वश्याकर्षणोच्चाटन कीलना द्वेषण इति षट् कर्माणि वृत्य हूं हूं फट् स्वाहा।

वात-ज्वर मरण-भय छिन्न छिन्न नेह नेह भूतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर तापज्वर बालज्वर कुमारज्वर अमितज्वर दहनज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर रूद्रज्वर मारीज्वर प्रवेशज्वर कामादि विषमज्वर मारी ज्वर प्रचण्ड घराय प्रमथेश्वर! शीघ्रं हूं हूं फट् स्वाहा।
॥ ॐ नमो नीलकंठाय, दक्षज्वर ध्वंसनाय श्री नीलकंठाय नमः॥

नीलकंठ भगवान की पूजा का महत्व

हिंदू धर्म में ऐसी मान्यताए हैं, कि समुद्र मंथन के समय जब विष निकला था तो भगवान शिव ने उस विश को धारण किया और उनका कंठ नीला हो गया था। तब से ही उनका एक और स्वरूप नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। सोमवार के दिन भगवान शिव के नीलकंठ स्वरूप का विधि पूर्वक पूजा उपासना करने से कुंडली के सभी ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं। साथ ही जीवन खुशहालियों से भर जाता है। घर-परिवार में सुख शांति बनी रहती है। भगवान शिव के ‘ऊँ नमो नीलकंठाय’। मंत्र का जाप करने और शिवलिंग का गन्ने के रस से अभिषेक करने से ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं।

पूजा विधि

भगवान नीलकंठ की पूजा करने के लिए आपको प्रातः काल उठना चाहिए। स्नान करके भगवान भोलेनाथ के मंदिर में जाना चाहिए। वहां आप भगवान से व्रत करने का संकल्प लें। उसके बाद शिवलिंग को जल दूध अर्पित करें और चंदन का लेप लगाए। भगवान भोलेनाथ को चंदन बहुत प्रिय है। इसके साथ ही भगवान को खोवे का लड्डू चढ़ाएं और कपूर जलाकर उनकी आरती करें।

इन मंत्रों का करें जाप

ॐ नमः शिवाय॥

ॐ नमो भगवते रूद्राय ।

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय

धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

‘ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्’

लघु महामृत्युंजय मंत्र ॐ हौं जूं सः

ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः

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