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भगवान शिव से सीखें उनके व्यक्तित्व के ये गुण,शिव आदि भी और अंत भी

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भगवान शिव से सीखें उनके व्यक्तित्व के ये गुण,शिव आदि भी और अंत भी

भगवान शिव आदि भी और अंत भी। भगवान शिव का स्वरूप विराट है। हिंदू धर्म में भगवान शिव एक प्रमुख देवता हैं। हिंदू धर्म में भगवान शिव के करोड़ों की संख्या में भक्त हैं। सावन का महीना, मासिक शिवरात्रि, महाशिवरात्रि, प्रदोष व्रत और सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है। इन दिनों में इनकी विशेष पूजा आराधना की जाती है। भगवान शिव को इस जगत का पहला गुरु माना गया है। देवता और असुर दोनों के लिए भगवान शिव बराबर पूजनीय हैं। भगवान शिव के एक नहीं कई स्वरूप हैं जिनमें सभी का महत्व है। भगवान साकार भी और निराकार भी। मर्यादा तोड़ने पर दंड, बेकाबू होने पर भस्म करने वाले देव है भोले भंडारी। मनुष्य को भगवान शिव के हर स्वरूप से कुछ ना कुछ सीख अवश्य ही मिलती है। शिव के स्वरूप को जानकर उसको अपने जीवन में जरूर उतारने का प्रयन्न करना चाहिए।

सादा जीवन, उच्च विचार

भगवान शिव का वास कैलाश पर्वत में माना जाता है। कैलाश जैसे निर्जन जगह पर ध्यान में लीन रहते हैं। उनकी पूजा में भी ऐसी चीज़ें चढ़ाई जाती हैं, जिसके लिए बहुत ज्यादा पैसे नहीं खर्च पड़ते। धतूरे के फूल, बेलपत्र मात्र के चढ़ावे से वो खुश हो जाते हैं। भगवान शिव कभी भी कीमती वस्त्रों और गहनों में नहीं दिखाए जाते हैं। उनकी ऐसी तस्वीर ये सीख देती है कि बड़ा बनने के लिए अच्छे विचार जरूरी हैं न कि ये सारे दिखावे।

स्त्री सम्मान

भगवान शिव स्त्री और पुरुष में कभी भेदभाव नहीं करते। उनकी तस्वीरों में माता पार्वती बिल्कुल उनके बगल में विराजमान दिखाई देती हैं। वहीं मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु के चरण दबाते हुए दिखाया जाता है। भगवान शिव के इस रूप से शिक्षा मिलती है कि स्त्री का सम्मान हर पुरुष के लिए जरूरी है।

समानता

भगवान शिव के लिए सिर्फ देवगण और भक्तगण ही प्रिय नहीं, बल्कि वो उनकी टोली में दैत्य, दानव और कई तरह के पशु-पक्षी भी शामिल हैं। जिनका त्याग सभी देवी-देवता कर देते हैं, भगवान शंकर उन सभी को अपना लेते हैं। उनका ये स्वभाव सिखाता है कि सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और समान भाव रखना चाहिए।

संसार का कल्याण

भगवान शंकर संसार के कल्याण के लिए बड़े से बड़ा कष्ट उठा लेते हैं। समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला था, तो उन्होंने बिना अपनी परवाह किए सारा का सार विष खुद ही ग्रहण कर लिया था। उनका ये कदम ये शिक्षा देता है कि संसार के कल्याण के लिए आगे बढ़कर हिस्सा लेना चाहिए।

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